अर्ज है.....
बस एक झिजक है यही हाल-ए-दिल सुनानेमे
की तेरा जिक्रभी आयेगा इस फ़सानेमे
इसीमे इश्ककी किस्मत बदलभी सकती थी
जो वक्त बीत गया मुझको आझमानेमे
ये कहके टूट पडा शाख-ए-गुलसे आखरी फ़ूल
अब और देर है कितनी बहार आनेमे
--- साहिर लुधियानवी
Thursday, August 18, 2011
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2 comments:
बस एक झिझक है फैमिली हिस्टरी बताने में
कि तेरा भी जिक्र आयेगा इस फसाने में,
सारे खेत कि सिंचाई भी हो सकती थी
जितना जल बहाया तेरे नहाने ने,
फसल बो कर फिर कट भी सकती थी
इतना टाइम गवाया गुसलखाने में,
अभी भी चिल्ला के शायरी गा रहा है नामाकूल
अब और कितनी देर है बाहर आने में ?
--Saahir Ludhiyanvi's rustic step-father was as talented but not as sympathetic, especially in the mornings.
Check the first song here.
http://gaana.com/#/albums/An_Enchanting_Hour_With_Begum_Akhtar_13085
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