A friend forwarded a few lines by Javed Akhtar:
'लफ्ज' ही ऐसी चीझ है जिसकी वजहसे
इन्सान या तो दिलमे उतर जाता है या दिलसे उतर जाता है
जिंदगीकी इस कश्मकशमे वैसे तो मैभी काफी बिझी हू
लेकिन वक्तका बहाना बनाकर अपनोको भूल जाना मुझे आजभी नही आता
जहा यार याद ना आये वो तनहाई किस कामकी
बिगडे रिश्ते ना बने तो खुदाई किस कामकी
बेशक अपनी मंजील तक जाना है
पर जहासे अपना दोस्त ना दिखे
वो उंचाई किस कामकी
'लफ्ज' ही ऐसी चीझ है जिसकी वजहसे
इन्सान या तो दिलमे उतर जाता है या दिलसे उतर जाता है
जिंदगीकी इस कश्मकशमे वैसे तो मैभी काफी बिझी हू
लेकिन वक्तका बहाना बनाकर अपनोको भूल जाना मुझे आजभी नही आता
जहा यार याद ना आये वो तनहाई किस कामकी
बिगडे रिश्ते ना बने तो खुदाई किस कामकी
बेशक अपनी मंजील तक जाना है
पर जहासे अपना दोस्त ना दिखे
वो उंचाई किस कामकी
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