Thursday, January 13, 2011

अर्ज़ किया है:

सफ़र की हद है वहा तक के कुछ निशाँ रहे
चले चलो के जहा तक ये आसमान रहे
ये क्या उठाये कदम और आ गयी मंजिल
मज़ा तो जब है के पैरोमे कुछ थकान रहे

(Forwarded)

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